भारत वर्ष के अनेको पावन तीर्थों में श्री गंगा जी में स्नान , दान का बहुत महत्व है ! हिन्दू सनातन धर्म में वेदों तथा पुराणों में वर्णित विशेष पर्व में , काल में , तिथि , ग्रह तथा नक्षत्र में किसी भी पवित्र नदी, कुंड, सरोवर,संगम आदि में स्नान-दान करने से उस शुद्ध जातक अथवा साधक या कोई भी पारिवारिक गृहपति जो आपने अपने गुरु,श्री गणेश, इष्टदेव, कुलदेव तथा मातृ कुल -पितृ कुल के समस्त पितरों की मुक्ति तथा परमेश्वर के श्री चरणों में परम गति के लिए भाव-भक्ति तथा श्रद्धा पूर्वक तिलोदक अर्पित करना चाहिए, ऐसा करने वाले के पितरों को अनंत काल तक प्रभु चरणों में भक्ति-मुक्ति तथा उनकी वर-अभय मुद्रा के सुपात्र बनते हैं !आप भी अपने पितरों की शुभ गति तथा उनकी तृप्ति हेतु किसी भी गंगा जी के घाट पर स्नान कर अपने समस्त पितरों के लिए श्रीगंगा जी में अपने पितरों को तिल मिश्रित मीठे गंगा जल डाल कर पहले सूर्यनारायण को फिर दक्षिण मुखी हो कर पुनः पितरों के लिए अर्ध्य दे साथ में पितरों का स्मरण करते हुए श्री गंगा पुत्र भीष्म का भी स्मरण !
Barse Kambal Bheege pani
भारत वर्ष के महान संतो में संत कबीर दास का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है ! संत कबीर दास अपनी उलट वाणी जो योगी, साधको के लिए निराकार परब्रह्म जो हमारे आत्मस्वरूप अनंत ब्रमांड में ही समाहित है , जिसे भटका हुआ समाज बाह्यजगत में निरंतर पाने में अपनी अपनी बुद्धि अनुसार, ना ना प्रकार के कर्मकांडो, तथा तंत्र मन्त्रों के सहारे परमात्मा को पाने के लिए भटकता रहता है और कभी भी योगविधि द्वारा अपने ही अंतर्मन में प्रत्यक्ष रूप में कभी परमात्मा का चिंतन मनन नहीं करता ! भक्ति- मुक्ति की चाबी है, और ये ताला-चाबी हमारे ही पास है! हर प्राणी ये ताला-चाबी लेकर ही जन्म लेता है लेकिन अपने ही कर्मफल से इस चाबी को खो बैठता है! संत कबीर कहते है "बरसे कम्बल, भीगे पानी" तथ्य स्पष्ट करता है की गूढ़-अतिगूढ़ ज्ञान की प्राप्ति तथा परमात्मा दर्शन केवल ध्यानयोग से ही संभव है जब स्वात्मा में पांच तत्वों का ज्ञान हो जाये तब आकाश रुपी कम्बल पाप अपराधों को नष्ट कर योगी तथा निष्काम साधक को जो शुद्ध मनोवृति को धारण कर ज्ञान के अथाह सागर में गोते लगता है जैसे आकाश रुपी ईश्वर, परमात्मा या जिसको भी जो माने, ज...
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